Dragon Fruit Business Idea in Hindi..

Dragon Fruit Business Idea in Hindi..

ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसान भाई मोटी कमाई कर सकते हैं । वैसे तो ये फल मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, अमेरिका और वियतनाम जैसे राज्यों का है, लेकिन अब भारत में भी इसकी खेती होने लगी है ।

खुद पीएम मोदी भी जुलाई 2020 में मन की बात में इसकी खेती का जिक्र कर चुके हैं और इसके जरिए आत्मनिर्भर होने के लिए गुजरात के किसानों को बधाई दे चुके हैं । आइए जानते हैं ड्रैगन फ्रूट की खेती से कितनी कमाई की जा सकती है ।
अगर आप भी ये सोचते हैं कि कम खेत होने की वजह से आप मोटी कमाई नहीं कर पा रहे तो ड्रैगन फ्रूट की खेती आपका नजरिया बदल देगी ।

जुलाई 2020 में पीएम मोदी ने भी मन की बात में ड्रैगन फ्रूट का जिक्र किया था । उन्होंने कच्छ के किसानों को ड्रैगन फ्रूट की खेती से आत्मनिर्भर बनने पर बधाई दी थी ।

ड्रैगन फ्रूट की खेती से आप सिर्फ 1 बीघा जमीन से भी 1 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं । गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा समेत कई राज्यों में किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती से मोटी कमाई( कर रहे हैं ।

Dragon Fruit को कमलम भी कहा जाता है..

इसे ड्रैगन फ्रूट को गुजरात में कमलम भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें कमल की तरह स्पाइक्स और पंखुड़ियां होती हैं। ड्रैगन फ्रूट का वैज्ञानिक नाम ‘हाइलोसेरेसुंडाटस’ है।

बात अगर गुजरात की करें तो वहां पर किसान जमकर ड्रैगन फ्रूट उगा रहे हैं। भावनगर जिले के वावड़ी गांव के एक किसान ने तो कम पानी और कम खर्च करके सिर्फ चार बीघा जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती से करीब 3.5 लाख रुपये की कमाई की है।

गुजरात में 2.5 बीघे का एक एकड़ होता है यानी करीब पौने 2 एकड़ से 3.5 लाख रुपये की कमाई हुई है। इस तरह देखा जाए तो ड्रैगन फ्रूट की खेती से एक एकड़ से करीब 2 लाख रुपये की सालाना कमाई हो सकती है।

भारत में कहां-कहां होती है ड्रैगन फ्रूट की खेती…

वैसे तो ड्रैगन फ्रूट मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम जैसे देशों में उगाया जाता है, लेकिन 1990 के दशक से भारत में भी इसकी खेती लोकप्रिय हो गई है।

इसकी तीन प्रजातियां हैं। पहला है सफेद गूदे वाला गुलाबी रंग का फल, दूसरा है लाल गूदे वाला गुलाबी रंग का फल और तीसरा है सफेद गूदे वाला पीले रंग का फल।

भारत में यह फल कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पैदा किया जाता है।

च्युइंग गम’ और जड़ी-बूटियों में होता है इस्तेमाल…

ड्रैगन फ्रूट की कमल जैसी कांटेदार कैक्टस प्रजाति स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। इसका इस्तेमाल च्युइंग गम और जड़ी बूटियों में भी होता है, जिसकी वजह से बाजार में इसकी खूब मांग है। ड्रैगन फ्रूट में फाइबर, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। यह लोगों का पाचन तंत्र सुधारता है, तनाव से जिन कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है उसकी मरम्मत करता है और शरीर में आई सूजन को भी कम करता है।

जानिए कैसे की जाती है ड्रैगन फ्रूट की खेती…

इसकी खेती पौधे और बीज दोनों से ही हो सकती है. हालांकि, अगर आप बीज से खेती करेंगे तो फल आने में 4- 5 साल लग सकते हैं. जबकि कलम से बनाए गए पौधे से खेती करने पर आपको 2 साल में ही फल मिलने शुरू हो जाते हैं. इसकी खेती कम पानी में भी हो सकती है, इसे ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. सर्दियों में 15 दिन में एक बार और गर्मियों में 8- 10 दिन में एक बार सिंचाई की जा सकती है.

इसकी खेती से पहले खेत में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद जरूर डालें, ताकि पौधे को न्यूट्रिशन की कोई कमी ना हो
इस खेती के बारे में कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि इसमें बस एक बार पैसे लगाकर आप करीब 25 साल तक लगातार फल लेते रह सकते हैं. इसके पौधों को सहारा देने के लिए आपको खेत में कुछ स्ट्रक्चर भी बनाना होगा. 10- 10 फुट पर खंभों के सहारे पौधे लगाए जाते हैं. एक एकड़ में करीब 1700 पौधे लगते हैं.

ध्यान रखें कि जिस खेत में इसे लगाएं, वहां पानी निकलने की उचित व्यवस्था हो. यह नम और गर्म जलवायु का पौदा है, जो 10 डिग्री से 40 डिग्री तापमान तक आसानी से झेल सकता है. जहां बर्फ पड़ती है, वहां पर इसकी खेती नहीं हो सकती है.

किस काम आता है ड्रैगनफ्रूट…

ड्रैगन फ्रूट की कमल जैसी कांटेदार कैक्टस प्रजाति लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदे वाली होती है. च्युइंग गम और जड़ी बूटियों में इसका खूब इस्तेमाल होता है. ड्रैगन फ्रूट में फाइबर, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं. ड्रैगन फ्रूट से पाचन तंत्र सुधारता है और तनाव से जिन
कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है उनकी मरम्मत होती है.

ड्रैगन फ्रूट की खेती के फायदे | Dragon Fruit Farming Business Benefits…

भारत में लोग पहले ड्रैगन फ्रूट के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन कोरोना काल के दौरान लोगों ने इसके स्वास्थ्य वर्धक फायदों के बारे में जाना और इसकी मांग बढ़ने लगी। भारत में इसकी खेती कम होने के कारण ये विदेशों से आयात किया जाता है।

मांग बढ़ने के कारण और अच्छा मुनाफा होने के कारण लोग इस फल की तरफ आकर्षित हुए हैं। ड्रैगन फ्रूट एक नगदी फसल है। इसकी खेती कई प्रकार से फायदेमंद है।

1. एक बार लगाने के बाद ड्रैगन फ्रूट का पौधा 25 साल तक रहता है और 25 सालों तक इससे फल प्राप्त होते रहते हैं। इस प्रकार ड्रैगन फ्रूट लगाने में शुरुवाती खर्च के बाद थोड़े बहुत मेंटेनेंस के साथ 25 साल तक मुनाफा कमाया जा सकता है।

2. ड्रैगन फूट का पौधा लगातार 6-7 महीने फल देता है। मई जून में इसमें फल लगने शुरू होते हैं। उसके बाद से दिसंबर – जनवरी तक इसके पौधे में फल लगते रहते हैं। ऐसा और कोई पौधा नहीं है, जो इतने महीने लगातार फल देता है।

3. ड्रैगन फ्रूट के साथ अंतरवर्ती खेती (इंटरक्रॉप) करके भी लाभ कमाया जा सकता है। ड्रैगन फ्रूट का खेत तैयार करते समय सीमेंट पोल के सहारे पौधे लगाए जाते हैं। सीमेंट पोल से लगे पौधों के बीच 7 से 10 फीट की दूरी रखना होता है। इस छूटी हुई खाली अन्य फसल या सब्जी लगाकर अतिरिक्त आय कमाई जा सकती है। ध्यान रहे कि ड्रैगन फ्रूट के खेत में धान या ऐसी फसल जिसमें पानी के जमाव की जरूरत पड़ती है, वह छोड़कर कोई भी अन्य फसल ली जानी चाहिए। क्योंकि ड्रैगन फ्रूट कम पानी की आवश्यकता वाला पौधा है। अधिक पानी से पौधा सड़ जायेगा।

4. ड्रैगन फ्रूट की खेती में केवल शुरुवाती खर्च होता है। उसके बाद का मेंटेनेंस और लेबर खर्च बहुत कम है। इसकी खेती में कम पानी, कम खाद की जरूरत होती है और साल में मात्र 3 या 4 बार खाद देनी पड़ती है।

कीड़े नहीं लगने के कारण इसमें कोई कीटनाशक छिड़काव की भी जरूरत नहीं पड़ती। शुरुवाती खर्च के लिए सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी का लाभ उठाया जा सकता है।
ड्रैगन फ्रूट रोग एवं कीटों से मुक्त है। चींटियाँ ही आती हैं इसलिए चींटियों से छुटकारा पाने के लिए नीम के तेल को पानी में मिलाकर स्प्रे करें। परिणामस्वरूप, फसलों में कीड़ों से होने वाली समस्याएँ नहीं होती हैं और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती है।

भारत में ड्रैगन फ्रूट कहां मिलेगा…

भारत में, कमलम बीजों की खेती तेजी से बढ़ रही है और कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, अंडमान द्वीप और निकोबार, मिजोरम और नागालैंड में किसानों ने रोपण शुरू कर दिया है।

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